MAHARASHTRA गैंगरेप का विरोध करते-करते मराठा मांगने लगे आरक्षण:मनोज जरांगे से पूछा-क्या शरद पवार के कहने पर पीछे हटे, बोले- दूसरा सवाल पूछिए
तारीख-13 जुलाई 2016
MAHARASHTRA के अहमदनगर का कोपर्डी गांव
एक 13 साल की मराठा लड़की शाम के वक्त खेलने के लिए घर से निकली। देर रात तक वह घर नहीं लौटी।
दूसरे दिन एक सुनसान जगह में लड़की की लाश मिली। शरीर पर कई जगह जख्म थे। कट के निशान थे। गांव के ही तीन लड़कों ने रेप कर उसकी हत्या कर दी थी। तीनों आरोपी जितेंद्र बाबूलाल शिंदे, संतोष गोरख भावल और नितिन गोपीनाथ भाइलुमे दलित थे।
कोपर्डी के निर्भया कांड के नाम से इस बर्बरता की चर्चा पूरे
MAHARASHTRA में फैल गई। जगह-जगह प्रदर्शन शुरू हो गए। अपराधियों को सजा-ए-मौत देने की मांग हुई। घटना की गंभीरता को देखते सरकार ने वरिष्ठ सरकारी वकील उज्ज्वल निकम को पैरवी के लिए नियुक्त किया।
MAHARASHTRA
कोपर्डी में हुई इस घटना ने मराठों को एकजुट कर दिया। इस बीच इंसाफ के लिए पहले स्थानीय स्तर पर प्रदर्शन हुए। फिर राज्यभर में प्रदर्शन होने लगे। सितंबर 2016 आते-आते ये प्रदर्शन बड़े आंदोलन में तब्दील हो गए। इसी महीने औरंगाबाद में एक मूक आंदोलन हुआ। इसमें लाखों लोग शामिल हुए।
आंदोलनकारियों ने रेप के अभियुक्तों के लिए फांसी की सजा के साथ ही SC-ST एक्ट में बदलाव और किसानों के मुद्दे भी उठाना शुरू कर दिए। ये वही समय था जब गुजरात में पटेल और हरियाणा में जाटों के आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन हो रहे थे। मराठों ने भी आरक्षण का मुद्दा इसमें जोड़ दिया। 18 नवंबर 2017 को अहमदनगर सेशन कोर्ट ने तीनों आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई, लेकिन इसके बाद भी आंदोलन जारी रहा। मनोज जरांगे पाटिल मराठा आरक्षण का प्रमुख चेहरा बन गए।
अब तक मराठा आरक्षण की लड़ाई ने जोर पकड़ लिया। कई बार हिंसक प्रदर्शन हो चुके हैं। कई लोग आत्महत्या भी कर चुके हैं। इस बार महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी यह प्रमुख मुद्दा है।
इसी साल जुलाई में मनोज जरांगे पाटिल ने सभी 288 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी, लेकिन ऐन वक्त पर उन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया।
4 नवंबर को मनोज जरांगे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने कहा, ‘अकेले एक समाज के बल पर हम चुनाव नहीं लड़ सकते। मुस्लिम और दलित समुदाय के नेताओं से हमने उम्मीदवारों की लिस्ट मांगी थी, लेकिन नहीं मिल पाई, इसलिए इस चुनाव में उम्मीदवार नहीं उतारेंगे।
जो 400 पार का नारा दे रहे थे, उनका क्या हुआ आपने देखा है। आप सभी को चुपचाप जाना है और वोट देकर वापस आना है। मराठा समुदाय को अपनी लाइन समझ लेनी चाहिए।’
जरांगे ने इशारों में अपने लोगों को समझा दिया कि वोट किस पार्टी को देना है।
‘MAHARASHTRA के महाकांड’ सीरीज के छठे एपिसोड में मराठा आंदोलन की कहानी और विधानसभा चुनाव में उसका असर जानने मैं औरंगाबाद पहुंची…
मैं मुंबई से करीब 350 किलोमीटर का सफर तय कर औरंगाबाद पहुंची। मराठा आरक्षण केस को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाले बिजनेसमैन विनोद पाटिल यहीं रहते हैं। बेशक मनोज जरांगे इस आरक्षण आंदोलन का चेहरा हैं, लेकिन विनोद पाटिल और बालासाहेब सर्राटे जैसे नेताओं से मिले बिना आंदोलन की बात करना बेमानी है।
विनोद पाटिल कहते हैं, ‘साल 2014 के चुनाव से पहले उस समय के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मराठों को 16% आरक्षण देने के लिए अध्यादेश लेकर आए थे, लेकिन 2014 में कांग्रेस-NCP गठबंधन की सरकार चुनाव हार गई। BJP-शिवसेना की सरकार में देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने। नवंबर 2014 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस अध्यादेश पर रोक लगा दी।’
पाटिल बताते हैं- ‘फडणवीस की सरकार में मराठा आरक्षण को लेकर एमजी गायकवाड़ की अध्यक्षता में पिछड़ा वर्ग आयोग बना। इसकी सिफारिश के आधार पर फडणवीस सरकार ने सोशल एंड एजुकेशनली बैकवर्ड क्लास एक्ट के विशेष प्रावधानों के तहत मराठों को आरक्षण दिया।’
फडणवीस सरकार में मराठों को 16% आरक्षण मिला, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे कम करते हुए सरकारी नौकरियों में 13% और शैक्षणिक संस्थानों में 12% कर दिया। मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया। पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने कहा कि आरक्षण की 50% की सीमा को तोड़ा नहीं जा सकता।
पाटिल कहते हैं, ‘इस पर हमने सुप्रीम कोर्ट से दोबारा विचार करने की याचिका दायर की जो खारिज हो गई। अब हमने कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दायर की है और ये आखिरी मौका है।’
इसके बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे नया आरक्षण कानून लेकर आ गए। मेरा सवाल है कि हमें सबसे पहले पृथ्वीराज ने आरक्षण दिया वो रद्द हो गया, फिर देवेंद्र फडणवीस ने दिया, वह भी रद्द हो गया, अब एकनाथ शिंदे ने हमें वही आरक्षण दिया है। इसका भविष्य क्या है हम समझ नहीं पा रहे हैं।
आखिर आरक्षण चाहिए क्यों? इस पर पाटिल कहते हैं- ‘हम पिछड़े हैं। हम भौगोलिक तौर पर हैदराबाद में थे। हमें महाराष्ट्र का हिस्सा बनाया गया, तो उस वक्त हैदराबाद पैक्ट के नाम से एक एग्रीमेंट हुआ था। उसमें लिखा था कि सभी समाज को आरक्षण दिया जाए। आज भी हैदराबाद और दक्षिण भारत में मराठा समाज OBC में है। MAHARASHTRA में ऐसा नहीं हुआ।
हमारी रोजी-रोटी खेती पर निर्भर है। सूखे से, गलत फसल उगाने से और कर्ज के कारण किसान परेशान हैं। किसानों की आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामले भी यहीं हुए हैं। महंगी शिक्षा हम ले नहीं सकते हैं। हम सिर्फ शिक्षा और नौकरी में आरक्षण मांग रहे हैं। मराठा समाज हर पार्टी में है। हम इस पर राजनीति नहीं करना चाहते हैं। नौ मुख्यमंत्री मराठवाड़ा से रहे, लेकिन हम वहीं के वहीं हैं। यह लड़ाई तब तक लड़ेंगे जब तक हम जीत नहीं जाते हैं।’
मराठा आरक्षण आंदोलन के मुद्दे को गहराई से जानने के लिए मैं वरिष्ठ पत्रकार जयदेव डोले के पास पहुंची। उनसे पूछा कि क्या मनोज जरांगे इस चुनाव पर कोई असर डाल पाएंगे?
जयदेव डोले बताते हैं- ‘मराठा आंदोलन और आरक्षण का इतिहास 50 साल पुराना है। इस मामले में दूसरी जातियों के बारे में जैसा सोचा गया, वैसा इनके बारे में किसी ने नहीं सोचा। किसानों की लागत बढ़ रही है, लेबर मिलना बंद हो गया। मराठों को लगा कि वह भी सरकारी नौकरी हासिल कर सकते हैं। उनकी दुखती रग है कि दलित और OBC उनसे आगे निकल गए। ये मामला सुप्रीम कोर्ट में दो बार इसलिए खारिज हो गया क्योंकि मराठों के पास मंडल कमीशन की तरह इसका थियोरिटिकल आधार नहीं है।’
डोले कहते हैं- ‘मराठा बनाम दलित, मराठा बनाम OBC चल रहा है। दलित बनाम OBC चल रहा है। भाजपा ने इसे हवा दी है। छोटी-छोटी जाति का संगठन बन रहा है। सभी को लगने लगा कि मराठा चुनाव में कुछ तो निर्णायक रहेंगे।’
वरिष्ठ पत्रकार संदीप सोनवलकर बताते हैं- ‘जरांगे पूरे महाराष्ट्र में दौरे कर रहे हैं। इस चुनाव में भी यह मुद्दा जमीन पर दिखाई दे रहा है। खासकर मराठवाड़ा इलाके और पश्चिम MAHARASHTRA में, जहां मराठा आबादी की ठीक-ठाक तादाद है। मराठवाड़ा में 46 विधानसभा सीटें हैं, जबकि पश्चिमी महाराष्ट्र में 70 सीटें हैं।
लोकसभा चुनाव में मराठा आरक्षण की मांग ने भाजपा को नुकसान पहुंचाया। वह केवल 9 सीटों पर सिमट गई। हालांकि, इस बार BJP ने समझदारी दिखाई है। BJP यह दिखा रही है कि मनोज जरांगे न तो उनके खिलाफ हैं और न ही उनके साथ हैं।
सोनवलकर कहते हैं- ‘मराठवाड़ा और पश्चिम MAHARASHTRA में जरांगे फैक्टर काम करता दिख रहा है। इस इलाके में मराठा आरक्षण का मुद्दा इसलिए भी अहम है, क्योंकि ये दोनों इलाके राजनीतिक रूप से भी काफी सक्रिय हैं। प्रदेश के नौ CM यहां से रहे हैं। जिनमें से आठ मराठा और एक दलित वर्ग से रहे हैं। इसलिए जरांगे ने मराठा आरक्षण से जुड़े आंदोलन के लिए इन दोनों क्षेत्रों को अपनी कर्मभूमि बनाया।
ऐसा कहा जाता है कि जरांगे के इस आंदोलन के पीछे एक पूर्व मुख्यमंत्री का हाथ है। कहा जाता है कि चुनाव में अपने उम्मीदवार न उतारने की सलाह भी उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री ने ही दी। अगर ऐसा नहीं होता तो इसका नुकसान अघाड़ी गठबंधन को होता। अगर जरांगे अपने उम्मीदवार उतारते तो मराठा वोटों के बंटने का खतरा रहता।’
कैंडिडेट का नॉमिनेशन वापस लेने पर जरांगे ने बताया- ‘मैंने पहले ही लोगों से कहा था कि अगर समीकरण बनते दिखेंगे, तभी हमें चुनाव लड़ना है। अगर हमारे मुताबिक समीकरण नहीं बने, तो हम नामांकन वापस ले लेंगे। ये पहले से तय था। एक जाति के दम पर पूरे राज्य में चुनाव नहीं जीता जा सकता।’
मनोज जरांगे के कैंडिडेट का नॉमिनेशन वापस लेने पर शरद पवार ने कहा था कि मनोज जरांगे का चुनाव से दूर होना और महाविकास अघाड़ी का आपस में कोई संबंध नहीं है। उनके इस फैसले से मुझे खुशी हुई। उन्होंने कैंडिडेट उतारे होते तो BJP को फायदा मिलता।
मनोज जरांगे इस समय अपने गांव में हैं। हमने उनके PA रोहिताश्व से बात की। थोड़ी देर बाद मैसेज आया कि सवाल भेज दें। हमने तीन सवाल मराठी भाषा में अनुवाद करके भेजे। हमारा पहला सवाल था- आपने अपने लोगों को चुनाव लड़ने से मना क्यों कर दिया। दूसरा था- चुनाव के बाद आप क्या करेंगे और तीसरा सवाल पूछा- लोग आपको शरद पवार का आदमी कह रहे हैं? इन सवालों का जवाब देने से मनोज जरांगे ने साफ इनकार कर दिया। उन्होंने PA रोहिताश्व से कहा- उनसे कोई दूसरे सवाल मंगा लो। इन सवालों का जवाब कभी नहीं दूंगा।
लोकसभा चुनाव में मराठवाड़ा की 8 सीटों में 7 महाविकास अघाड़ी ने जीतीं और भाजपा को एक सीट मिली। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 4, शिवसेना को 3 और ओवैसी की पार्टी को एक सीट मिली थी।
सोनवलकर बताते हैं, ‘प्रदेश में मराठों की आबादी लगभग 28% है। इनकी अनदेखी का जोखिम कोई नहीं उठा सकता। मराठवाड़ा और पश्चिमी MAHARASHTRA में 70 सीटें हैं। इन दोनों ही इलाकों में जरांगे का प्रभाव देखते हुए सभी गठबंधन के लिए जरांगे अहम हो गए हैं। लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाडी के बेहतर प्रदर्शन के पीछे उसे दलित, मुस्लिम और मराठों का साथ मिलना बताया जा रहा है। इसी को देखते हुए BJP ने बंटेंगे तो कटेंगे का नारा देकर हिंदू समाज की तमाम जातियों में होते बिखराव को रोकने की कोशिश की है।’
सोनवलकर कहते हैं, ‘मराठा समुदाय ने देखा है कि कांग्रेस-NCP के समय में मराठों का राजनीतिक वर्चस्व रहा है, लेकिन BJP-शिवसेना के बाद उनके उस राजनीतिक दबदबे में कमी आनी शुरू हुई। जरांगे मराठों के साथ-साथ किसानों का मुद्दा भी उठा रहे हैं, क्योंकि मराठा समुदाय से आने वाले किसानों की आर्थिक स्थिति काफी खराब है।
कई सीटों पर BJP ने मराठों को टिकट दिया है, लेकिन जरांगे मराठों को BJP, खासकर पूर्व CM देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ लामबंद कर रहे हैं। जरांगे और उनके समर्थक न तो महाविकास अघाडी के खिलाफ बोलते हैं और न ही CM एकनाथ शिंदे और शिवसेना (उद्धव) को निशाना बनाते हैं। उनके निशाने पर सिर्फ BJP है।’
औरंगाबाद की बाबा साहब मराठवाड़ा यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर और मराठा आरक्षण संबंधी फैक्ट और डेटा से संबंधित काम करने वाले बाबा साहेब सर्राटे बताते हैं- ‘1982 में मराठा आरक्षण को लेकर पहली बार बड़ा आंदोलन हुआ था। 1982 में मराठी लेबर यूनियन के नेता अन्नासाहेब पाटिल ने आर्थिक स्थिति के आधार पर मराठों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन किया था। सरकार ने उनकी मांग को नजरअंदाज किया तो उन्होंने खुदकुशी कर ली।
सर्राटे बताते हैं, ‘मराठा आरक्षण की मांग 1967 में ही उठने लगी थी। इस साल 180 समुदायों की पहली सूची आई थी जो आरबिर्टी थी। बिना किसी रिपोर्ट के। तब से उस सूची से मराठा निकाल दिए गए।
1978 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट से भी मराठा हटा दिए गए। मंडल कमीशन की रिपोर्ट भी राज्य स्तर पर बनी थी और उस वक्त शरद पवार सरकार में थे। जबकि मंडल की पॉलिसी थी कि सभी किसान समुदायों को लेना है, लेकिन नहीं लिया गया।
20 मार्च 1994 को MAHARASHTRA सरकार ने एक आदेश जारी किया। उस वक्त भी शरद पवार ही मुख्यमंत्री थे। उस आदेश में OBC का आरक्षण जो 10 फीसदी था उसे 30 फीसदी कर दिया गया और 50 फीसदी की लिमिट को ब्लॉक कर दिया गया।
सियासत में कितने ताकतवर हैं मराठा? इस सवाल के जवाब में सर्राटे और पाटिल दोनों का कहना है- ‘हम इंतजार कर रहे हैं नई सरकार के गठन का। मराठा को आरक्षण तो देना ही पड़ेगा, लड़ाई चाहे जितनी लंबी हो, जीत हमारी ही होगी।’
मराठा खुद को कुनबी समुदाय का बताते हैं। इसी के आधार पर आरक्षण मांग रहे हैं। इसकी नींव 26 जुलाई 1902 को पड़ी। छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज और कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति शाहूजी ने अपने राज्य में 50% आरक्षण मराठा, कुनबी और अन्य पिछड़े समूहों को देने के लिए कहा।
इसके बाद 1942 से 1952 तक बॉम्बे सरकार के दौरान भी मराठा समुदाय को 10 साल तक आरक्षण मिला था, लेकिन फिर मामला ठंडा पड़ गया। आजादी के बाद मराठा आरक्षण के लिए पहला संघर्ष मजदूर नेता अन्नासाहेब पाटिल ने शुरू किया। उन्होंने ही अखिल भारतीय मराठा महासंघ की स्थापना की थी। 22 मार्च 1982 को अन्नासाहेब पाटिल ने मुंबई में मराठा आरक्षण समेत अन्य 11 मांगों के साथ पहला मार्च निकाला था।
उस समय MAHARASHTRA में कांग्रेस (आई) सत्ता में थी और बाबासाहेब भोसले MAHARASHTRA के मुख्यमंत्री थे। विपक्षी दल के नेता शरद पवार थे। शरद पवार तब कांग्रेस (एस) में थे। मुख्यमंत्री ने आश्वासन तो दिया, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाए। इससे अन्नासाहेब नाराज हो गए।
अगले ही दिन 23 मार्च 1982 को उन्होंने अपने सिर में गोली मारकर आत्महत्या कर ली। इसके बाद राजनीति शुरू हो गई। सरकारें गिरने-बनने लगीं और इस राजनीति में मराठा आरक्षण का मुद्दा ठंडा पड़ गया।