PUNE राज ठाकरे ने करवाया था माइकल जैक्सन का कॉन्सर्ट

PUNE राज ठाकरे ने करवाया था माइकल जैक्सन का कॉन्सर्ट

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PUNE राज ठाकरे ने करवाया था माइकल जैक्सन का कॉन्सर्ट
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PUNE एक हत्याकांड बना टर्निंग पॉइंट क्यों नहीं मिली शिवसेना की गद्दी

PUNE- 23 जुलाई 1996… पुणे के अलका टॉकीज में पुलिस को एक शव मिला। यह शव मुंबई के माटुंगा निवासी रमेश किनी का था। अगली सुबह यानी 24 जुलाई को ‘सामना’ अखबार के फ्रंट पेज पर खबर छपी- ‘दादर के एक छोटे व्यापारी की पुणे में हत्या।’

उसी दिन विपक्ष के नेता छगन भुजबल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई, जिसमें मृतक रमेश किनी की पत्नी शीला भी शामिल हुईं। प्रेस कॉन्फ्रेंस में शीला के आरोपों ने सभी को हैरान कर दिया। उन्होंने कहा कि राज ठाकरे के इशारे पर मेरे पति का अपहरण और हत्या हुई है।

उस समय महाराष्ट्र में शिवसेना के मनोहर जोशी मुख्यमंत्री थे और भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे उपमुख्यमंत्री थे। शिवसेना और भाजपा की गठबंधन सरकार को राज्य में एक ही साल पूरा हुआ था। रमेश किनी हत्याकांड में राज ठाकरे का नाम आने से राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ गई। ये राज ठाकरे की जिंदगी का एक बड़ा टर्निंग पॉइंट साबित हुआ।

शुरुआतः ‘स्वरराज’ से राज ठाकरे बनने का सफर राज ठाकरे के पिता श्रीकांत ठाकरे ने संगीत प्रेम की वजह से उनका नाम ‘स्वरराज’ रखा था। स्वरराज का मतलब होता है ‘सुरों का बादशाह।’ श्रीकांत ने राज को बचपन से ही तबला, गिटार और वायलिन की शिक्षा दी थी।

वरिष्ठ पत्रकार धवल कुलकर्णी अपनी किताब ‘द कजिन्स ठाकरे’ में लिखते हैं कि बालासाहेब ठाकरे का अपने भतीजे के लिए प्रेम किसी से छुपा नहीं था। 1969 में कर्नाटक के साथ सीमा विवाद को लेकर मुंबई में दंगे भड़कने लगे। इन दगों में बालासाहेब का नाम सामने आया। उन्हें अपने सहयोगियों मनोहर जोशी और दत्ताजी साल्वी के साथ तीन महीने के लिए यरवदा जेल में कैद रखा गया। 9 अप्रैल 1969 को श्रीकांत अपने परिवार के साथ जेल में अपने भाई बालासाहेब से मिलने जेल पहुंचे।

‘द कजिन्स ठाकरे’ के मुताबिक, बालासाहेब अपनी डायरी में लिखते हैं,

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UTTAR PRADESH अयोध्या में भगवान राम के स्वागत की तैयारी

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मैंने फत्या (राज) को गोदी में उठाया, लेकिन वह मुझे भूल गया था। फत्या, जो मेरी आवाज सुनते ही मुझ पर कूद पड़ता था और पागल हो जाता था, दूर जा रहा था। मुझे बुरा लगा, लेकिन वह फिर से मेरा प्यार हासिल करेगा।

धवल कुलकर्णी लिखते हैं राज और उद्धव साथ में ही बड़े हुए। दोनों एक साथ दादर के बाल मोहन विद्या मंदिर स्कूल में पढ़ते थे। उद्धव जहां शर्मीले स्वभाव के थे, वहीं राज को लड़कियों में दिलचस्पी रहती थी। पढ़ाई-लिखाई में दिल न लगने की वजह से वे खुद को कमतर स्टूडेंट कहते थे। राज 3 साल की उम्र से ही अपने चाचा बालासाहेब के तौर तरीके सीखने लगे थे। उद्धव को श्रीकांत के साथ समय बिताना पसंद था।

करियर: बालासाहेब के कहने पर ‘मार्मिक’ में कार्टूनिस्ट का काम किया स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद राज ने सर जे.जे. इंस्टीट्यूट ऑफ अप्लाइड आर्ट्स से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। कॉलेज के दिनों में राज के बनाए गए कार्टून्स की मांग विदेशों में भी होने लगी थी। बालासाहेब, राज से कहा करते थे कि

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मैंने कार्टूनिस्ट के रूप में अपना करियर बाल ठाकरे के नाम से शुरू किया। तुम राज ठाकरे के नाम से अपना करियर शुरू कर सकते हो।

ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने बालासाहेब ठाकरे की वीकली मैग्जीन ‘मार्मिक’ में बतौर कार्टूनिस्ट काम करना शुरू कर दिया। बालासाहेब ठाकरे ने वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले से एक इंटरव्यू में कहा, ‘अगर राज राजनीति में नहीं आते, तो वह एक अच्छे कार्टूनिस्ट बन जाते।’

बालासाहेब के नक्शे कदम पर चलते-चलते राज शिवसेना के कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगे। वे हूबहू बालासाहेब की तरह दिखते, चलते और बोलते थे। इसी वजह से लोग समझने लगे थे कि बालासाहेब के बाद शिवसेना की कमान राज ठाकरे को सौंप दी जाएगी।

जब माइकल जैकसन ने बालासाहेब के टॉयलेट में ऑटोग्राफ दिया, राज को 4 करोड़ का फंड मिला 1 नवंबर 1996 को मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर भारी संख्या में पुलिस बल मौजूद था। हर कोई अपने हाथ में गुलदस्ते और फूलों की माला लेकर ‘किंग ऑफ पॉप’ यानी माइकल जैकसन का इंतजार कर रहा था। यह पहली बार था कि माइकल भारत में म्यूजिक कॉन्सर्ट कर जा रहे थे।

माइकल को रिसीव करने के लिए राज ठाकरे और बॉलीवुड एक्ट्रेस सोनाली बेंद्रे एयरपोर्ट पहुंचे। दोनों ने गुलदस्ता देकर माइकल का स्वागत किया और यह काफिला सीधा जा पहुंचा बालासाहेब के घर ‘मातोश्री।’

‘द कजिन्स ठाकरे’ के मुताबिक, ‘मातोश्री में माइकल ने बालासाहेब से मुलाकात की और उनका टॉयलेट भी इस्तेमाल किया। माइकल ने खुद को टॉयलेट में बहुत देर तक बंद कर लिया था। उन्होंने टॉयलेट की एक दीवार पर अपना ऑटोग्राफ भी दिया। बालासाहेब ने माइकल को चांदी का तबला और तानपूरा भेंट किया था।

अंधेरी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में कॉन्सर्ट हुआ। खबर ये भी थी कि 16 हजार की पब्लिक कैपेसिटी वाले कॉन्सर्ट में 70 हजार लोग पहुंच गए थे। इस कॉन्सर्ट का आयोजन राज ठाकरे ने ही कराया था। इस कॉन्सर्ट का उद्देश्य 27 लाख मराठी युवाओं को रोजगार दिलाना था। उन दिनों राज शिव उद्योग सेना संगठन चलाते थे, जो बेरोजगार युवाओं के लिए काम करता था।

कॉन्सर्ट पूरा होने के बाद माइकल ने राज को 4 करोड़ रुपए का फंड दिया था। माइकल इसके लिए पहले राजी नहीं थे। उन्होंने अपने मैनेजर से पूछा, क्या ये 27 लाख लोग मेरे फैन हैं? मैनेजर ने कहा- अगर आप उनकी मदद करें तो जरूर! ये आपके फैन बन सकते हैं। इसके बाद माइकल ने राज ठाकरे से मुलाकात की और उन्हें 4 करोड़ रुपए का फंड दे दिया।

तकरार: उद्धव को BMC चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी, राज का कद छोटा होता गया साल 2000 आते-आते शिवसेना में बालासाहेब ठाकरे के बाद उनके भतीजे राज ठाकरे दूसरे नंबर के नेता हो गए थे। ऐसा माना जाने लगा कि बालासाहेब के बाद राज ठाकरे ही शिवसेना संभालेंगे।

रमेश किनी हत्याकांड राज ठाकरे के जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। इस केस की जांच CBI को सौंप दी गई। CBI से क्लीन चिट तो मिली, लेकिन राज और बालासाहेब के बीच दरार पड़ चुकी थी।

बालासाहेब के तीन बेटे हुए- जयदेव, बिंदुमाधव और उद्धव। 1995 में बड़े बेटे जयदेव की मौत हो गई। अगले ही साल एक कार एक्सीडेंट में बिंदुमाधव की भी जान चली गई। उद्धव को राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी, वो फोटोग्राफी करते थे।

2002 में पिता के कहने पर उद्धव शिवसेना के राजनीतिक कार्यक्रमों में शामिल हुए। सुनियोजित तरीके से बालासाहेब ने उद्धव को इस साल होने वाले मुंबई महानगर पालिका के चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी। उद्धव पिता के इशारे को समझ चुके थे। उन्होंने इस चुनाव में राज ठाकरे के कई करीबी नेताओं के टिकट काट दिए। नाराज होकर भी राज ठाकरे कुछ नहीं कर पाए। यहां तक कि राज ने एक इंटरव्यू में कह दिया था- ‘हां! मैं दुखी हूं।’

जब चुनाव परिणाम आया तो शिवसेना और ‌BJP गठबंधन ने 227 में से 133 सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखी। कांग्रेस ने 60 सीटें जीतीं, NCP को 12 और समाजवादी पार्टी को 10 सीटें ही मिल सकीं। 2002 के इस चुनावी जीत से पार्टी पर उद्धव की पकड़ मजबूत हो गई। अब तक शिवसैनिकों को भी यह बात समझ में आने लगी थी कि आने वाले समय में उद्धव ठाकरे ही शिवेसना के प्रमुख बनेंगे।

गद्दी गवांई: महाबलेश्वर अधिवेशन में राज के प्रस्ताव पर उद्धव को कमान सौंपी गई वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र दीक्षित बताते हैं कि इस जीत के अगले साल ही 30 जनवरी 2003 को महाराष्ट्र के महाबलेश्वर में शिवसेना का अधिवेशन रखा गया। इसमें उद्धव ठाकरे को अध्यक्ष बनाए जाने का प्रस्ताव पेश हुआ। सबको हैरान उस वक्त हुई जब राज ठाकरे ने खुद ये प्रस्ताव दिया। राज के फैसले को आज तक कोई नहीं समझ पाया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया।

इस प्रस्ताव पर सर्वसम्मति से बालासाहेब ठाकरे ने उद्धव को शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। अब तक पार्टी में सिर्फ शिवसेना प्रमुख का पद था। पहली बार उद्धव के लिए कार्यकारी अध्यक्ष का नया पद बनाया गया। उद्धव के कार्यकारी अध्यक्ष बनते ही राज ठाकरे की अपने चाचा से नाराजगी बढ़ने लगी।

बगावत की शुरुआत: भतीजे की बगावत पर बालासाहेब के तेवर बदले 10 दिसंबर 2005 को शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए बालासाहेब ठाकरे ने एक कॉलम में लिखा-

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क्या शिवसेना पार्टी दो हिस्सों में बंट जाएगी? यह बंटवारा किस तरह से होगा? इन सवालों पर चिंता करना आप लोग बंद करें। आप सभी महाराष्ट्र और अपने बारे में चिंता करें। हम अपने किले की रक्षा करने में सक्षम हैं। मैं मीडिया को बताना चाहता हूं कि जो कुछ भी आपके मन में है वह नहीं होने वाला है। शिवसेना अजेय और अविनाशी है।

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अब तक शिवसेना में उद्धव ठाकरे हावी होने लगे थे। पार्टी के हर फैसले में उनका असर दिखने लगा था। 2005 में तब हंगामा मच गया जब राज ठाकरे ने पत्र लिखकर बालासाहेब ठाकरे से कहा कि चापलूसों की चौकड़ी आपको गुमराह कर रही है। उन्होंने कोंकण लोकसभा सीट पर हार के लिए भी इस चौकड़ी को जिम्मेदार ठहराया।

द कजिन्स ठाकरे’ के मुताबिक, राज ठाकरे जिस चौकड़ी की बात कर रहे थे उसमें उद्धव, मिलिंद नार्वेकर और सुभाष देसाई शामिल थे। राज के बागी अंदाज को बालासाहेब ​​​​​​भांप गए थे। ऐसा कहा गया कि राज ने अपने पत्र में बालासाहेब से वैसे ही जवाब मांगा था जैसे किसी शावक ने बाघ से सवाल किया हो।

उद्धव के साथ काम करना राज के लिए मुश्किल हो रहा था और साथ ही वह जानते थे कि बालासाहेब के समर्थन के बिना शिवसेना पार्टी के निशान और नाम पर कब्जा करना मुश्किल है। ऐसे में दिसंबर 2005 में उन्होंने शिवसेना छोड़ने का फैसला किया।

बालासाहेब को अपना भगवान बताकर, राज ने शिवसेना को अलविदा कहा

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मेरा झगड़ा मेरे विट्ठल (भगवान विठोबा) के साथ नहीं है, बल्कि उसके आसपास के पुजारियों के साथ है। कुछ लोग हैं, जो राजनीति की ABC को नहीं समझते हैं। इसलिए मैं शिवसेना के नेता के पद इस्तीफा दे रहा हूं। बालासाहेब ठाकरे मेरे भगवान थे, हैं और रहेंगे।

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27 नवंबर 2005 को राज ठाकरे ने शिवाजी पार्क में अपने घर ‘कृष्णकुंज’ के बाहर समर्थकों को संबोधित करते हुए यह भाषण दिया। हजारों समर्थकों की भीड़ ने ताली बजाई और जयकार की। ‘राज साहेब आगे बढ़ें हम तुम्हारे साथ हैं’ के नारे लगना शुरू हो गए।

यहां से राज का शिवसेना छोड़ने का आगाज हो चुका था। राज इससे पहले बालासाहेब ठाकरे के बुलावे पर शिवसेना नेताओं की बैठक में शामिल नहीं हुए थे। अपने समर्थकों को संबोधित करने से पहले उन्होंने अपने चाचा को पार्टी के पदों से इस्तीफा देने का एक पत्र फैक्स किया। पिछले तीन सालों में पार्टी की चुनावी असफलताओं पर भी सवाल उठाया

द कजिन्स ठाकरे’ के मुताबिक, राज के एक निजी दोस्त ने कहा कि राज शिवसेना से इस्तीफा देने के बाद भावुक हो गए थे, यहां तक कि एक बंद कमरे की बैठक में रो पड़े। यह भी कहा जाता है कि राज का इस्तीफा पत्र संजय राउत ने तैयार किया था। पत्र के लहजे में ठहराव था और इसमें राज के पार्टी छोड़ने की वजह को बखूबी लिखा गया था। बालासाहेब ने इस पत्र को एक बार देखा और राउत से कहा कि यह उनका काम है।

18 दिसंबर 2005 को राज ठाकरे ने अपने दोस्त मनोहर जोशी के साथ शिवसेना छोड़ने और नई पार्टी बनाने की घोषणा की। शिवाजी पार्क जिमखाना में एक भीड़ भरे संवाददाता सम्मेलन में राज ने कहा कि वह सिद्धिविनायक मंदिर में दर्शन के बाद 17 जनवरी 2006 से महाराष्ट्र का दौरा करेंगे।

इस पर तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री और राकांपा प्रमुख शरद पवार ने राज पर कटाक्ष करते हुए कहा था- राजनीति में सक्रिय होने के लिए जल्दी उठना पड़ता है।

शिवाजी पार्क मैदान से ‘मराठी मानुस की पार्टी’ की शुरुआत 9 मार्च 2006 की शाम को शिवाजी पार्क मैदान भीड़ से खचाखच भरा था। हर तरफ राज ठाकरे की नई पार्टी के झंडे लगे हुए नजर आ रहे थे। पार्टी के झंडे के तीन रंग थे। भगवा रंग हिंदुओं के लिए, हरा रंग मुसलमानों के लिए और नीला रंग दलितों का प्रतीक था। इसमें दो सफेद रंग की पट्टियां भी बनी थी, जिसका मतलब था शांति। 4 दशक के बाद इतिहास खुद को दोहरा रहा था। राज ने यहां 40 साल पहले बालासाहेब की पार्टी शिवसेना के लिए पहली रैली निकाली थी। अब वे इसी मैदान से अपनी नई पार्टी की शुरुआत करने जा रहे थे।

पार्टी के गठन के समय नाम को लेकर कई बार बैठकें की गई। शिवसेना जैसे नामों की तलाश की जा रही थी। आखिर में ‘महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना’ के नाम पर मुहर लगी। राज चाहते थे कि पार्टी महाराष्ट्र तक ही सीमित रहे और नाम में ‘सेना’ शब्द हो। उन्होंने जयप्रकाश नारायण के ‘नवनिर्माण आंदोलन’ की वजह से ‘नवनिर्माण’ को चुना, जिसे वे महाराष्ट्र में फिर से बनाना चाहते थे।

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1966 में मेरे दादा प्रबोधकर ने इसी मैदान में शिवसेना की कमान बालासाहेब ठाकरे को सौंपी थी। वे शिवसेना की पहली सार्वजनिक सभा में अपने बेटे बालासाहेब को महाराष्ट्र समर्पित कर रहे थे। मैं इसी पल से खुद को महाराष्ट्र को समर्पित कर रहा हूं।

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‘द कजिन्स ठाकरे’ के मुताबिक, मनसे के गठन के दौरान राज ठाकरे ने ऐलान कर दिया था कि यही पार्टी महाराष्ट्र पर राज करेगी। मार्च के उस धुंधले दिन, राज के भाषण में ज्यादातर विकास के वादे किए गए। राज ने सरकार पर अधूरा विकास और झूठे वादों को लेकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि अब वे महाराष्ट्र के लिए एक खाका तैयार कर रहे हैं। इससे राज्य में नए सिरे से विकास शुरू होगा। राज ने मनसे को ‘मराठी मानुस की पार्टी’ बताया।

जब राज ठाकरे ने जया बच्चन को धमकी दी, अमिताभ ने माफी मांगी 2008 की बात है। राज ठाकरे ने उत्तर भारतीयों (उत्तर प्रदेश और बिहार) के खिलाफ हिंसक आंदोलन करना शुरू कर दिया। ठाकरे की मांग थी कि महाराष्ट्र में हिंदी की जगह मराठी को तवज्जो दी जाए। सरकारी दफ्तरों, स्कूल-कॉलेज समेत सभी जगहों पर मराठी बोली और लिखी जाए। ये हिंसा इतनी ज्यादा बढ़ गई कि मनसे कार्यकर्ताओं ने अंग्रेजी और हिंदी साइनबोर्डों को काला करना शुरू कर दिया।

लंबे समय तक हिंदी को लेकर महाराष्ट्र में उत्तर भारतीय बनाम मराठी को लेकर तनाव बना रहा। इस बीच बॉलीवुड एक्ट्रेस जया बच्चन के एक बयान ने आग में घी डालने का काम कर दिया। सितंबर 2008 में जया ने कहा, ‘हम उत्तर प्रदेश के लोग हैं। हम मराठी क्यों बोलें। हम तो हिंदी ही बोलेंगे।’

जया के बयान से राज ठाकरे का हिंदी को लेकर गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था। राज ठाकरे ने सार्वजनिक मंच पर जया बच्चन की सभी फिल्मों पर प्रतिबंध लगाने की धमकी तक दे दी। उन्होंने कहा, जब तक जया माफी नहीं मांग लेतीं तब तक उनका विरोध जारी रहेगा। विरोध इतना बढ़ गया कि मनसे कार्यकर्ताओं ने सिनेमाघरों पर हमले करने शुरू कर दिए। लगातार हो रहे हमलों की वजह से अमिताभ बच्चन को आगे आकर जया बच्चन की तरफ से माफी मांगनी पड़ी थी।

 

मई 2008 में राज ने शिवाजी पार्क में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि महाराष्ट्र में पंजाबी, सिंधी, पारसी और हर तरह के लोग रहते हैं। हम उनसे खतरा महसूस क्यों नहीं करते? लेकिन ये उत्तर भारतीय (छठ पूजा जैसे कार्यक्रमों के जरिए से) अपनी ताकत दिखा रहे हैं। उन्होंने यह भी दावा किया कि मुंबई में असामाजिक तत्व उत्तर भारत से आए थे। राज ने सरकार को यह कहते हुए उन्हें गिरफ्तार करने की चुनौती दी कि राज्य में सिर्फ महाराष्ट्र दिवस मनाने की इजाजत मिलेगी।

पहली गिरफ्तारी: उत्तर भारतीयों के खिलाफ मनसे का विरोध बढ़ा, राज गिरफ्तार हुए अक्टूबर 2008 की बात है। मनसे कार्यकर्ताओं ने रेलवे बोर्ड परीक्षा केंद्रों के बाहर मंडली लगा ली थी। वे मुंबई में होने वाली परीक्षाओं के लिए आने वाले उत्तर भारतीय उम्मीदवारों पर हमला करने की फिराक में थे। जैसे ही उत्तर भारतीय छात्रों का आना शुरू हुआ, मनसे कार्यकर्ता टूट पड़े। कई छात्र घायल हुए। इस घटना की वजह से राज ठाकरे को कोंकण के रत्नागिरी से गिरफ्तार किया गया, जहां वे दौरे पर थे। राज की गिरफ्तारी के बाद पूरी मुंबई में हिंसा की छिटपुट घटनाएं भी हुई। राज को बाद में कई गुना ज्यादा पैसों में जमानत पर रिहा कर दिया गया।

मनसे ने शिवसेना के एजेंडे को भी हाईजैक कर लिया। राज ने मांग की कि इंडस्ट्री और प्राइवेट सेक्टर में कम से कम 80% नौकरियों में महाराष्ट्र के लोगों को प्राथमिकता दी जाए। राज्य सरकार ने इसके लिए एक संशोधित अधिसूचना जारी की, जो 1964 की है। तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने कहा कि वे इस कानून के तहत महाराष्ट्र में 15 सालों से रहे व्यक्ति को नौकरियों में प्राथमिकता दी जाएगी।

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बालासाहेब का निधन: राज-उद्धव को साथ लाने वाली कड़ी टूटी, मनसे पिछड़ती गई

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कम से कम मराठी मनू को शिवसेना के खिलाफ खड़ा नहीं होना चाहिए। जहां (दादर) शिवसेना का 1966 में जन्म हुआ था, जहां शिवसेना भवन गर्व से खड़ा है, वहां शिवसेना को धूल चटा देनी पड़ी। ये सब उन लोगों ने किया जिन्होंने शिवसेना को दो हिस्सों में बांट दिया। ऐसा क्यों हुआ है?

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2012 में अपनी पार्टी की दशहरा रैली में बालासाहेब ठाकरे के इन अल्फाजों से पार्टी के टूटने का दुख साफ जाहिर हो रहा था। इन दिनों उद्धव ठाकरे शिवसेना को ऊंचाइयों पर पहुंचाने की कोशिशों में लगे थे। दूसरी तरफ राज ठाकरे मनसे के जरिए महाराष्ट्र पर राज करना चाह रहे थे। गठन के बाद से ही मनसे चुनावों में बहुमत हासिल करने की कोशिशों में लगी हुई थी। 2009 के विधानसभा चुनावों में मनसे ने 13 सीटें जीती थीं। यह उसका अब तक का सबसे बेहतर परफॉर्मेंस था।

17 नवंबर 2012 में बालासाहेब ठाकरे का देहांत हो गया। कभी नहीं सोने वाला शहर मुंबई पूरी तरह से बंद हो गया था। राज और उद्धव को एक साथ जोड़ने वाली कड़ी भी अब टूट चुकी थी। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव हुए। इन चुनावों में मनसे 10 सीटों पर लड़ी, लेकिन एक भी सीट जीत नहीं पाई। बालासाहेब के निधन से शिवसेना को हमदर्दी मिली, लेकिन मनसे औंधे मुंह गर गई।

2019 के विधानसभा चुनावों में मनसे कुल 218 सीटों पर लड़ी, लेकिन सिर्फ 1 सीट कल्याण ग्रामीण ही जीत सकी। इस सीट से प्रमोद रतन पाटिल मनसे के इकलौते विधायक बने। इस चुनाव में शिवसेना और भाजपा ने गठबंधन कर लिया था।

तीसरी पीढ़ी: राज ठाकरे कभी चुनाव नहीं लड़े, अब बेटे को उतारा राज ठाकरे ने बालासाहेब के नक्शे कदम पर चलते हुए कभी चुनाव नहीं लड़ा। वे मनसे के संस्थापक के रूप में ही काम करते रहे।

मौजूदा समय में 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है। मनसे ने 45 कैंडिडेट्स की लिस्ट जारी कर दी है। मनसे राज्य में अकेले चुनाव लड़ेगी। राज ठाकरे ने अपने बेटे अमित ठाकरे को मुंबई की माहिम सीट से मैदान में उतारा है।

मित राजनीति में कदम रखने वाले ठाकरे परिवार के तीसरे शख्स हैं। अभी तक ठाकरे परिवार से उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे ही चुनाव लड़कर विधायक बने हैं। महाराष्ट्र की 288 सीटों के लिए 20 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। इसके नतीजे 23 नवंबर को घोषित होना है।

 

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