JHARKHAND हेमंत जिस जमीन के कारण जेल गए

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JHARKHAND हेमंत जिस जमीन के कारण जेल गए, वहां सिर्फ घास:केयरटेकर बोली- CM यहां कभी नहीं आए; क्या जमीन घोटाले को भुना पाएगी BJP

5 दिन पहले रांची की बिरसा मुंडा सेंट्रल जेल के कैदी बने CM हेमंत सोरेन पुलिस की निगरानी में विधानसभा पहुंचे। सदन में शोर-शराबे के बीच हेमंत ने उन पर कार्रवाई करने वाली ED और केंद्र सरकार को चैलेंज दिया। बोले- ‘अगर हिम्मत है तो सबूत दिखाएं कि 8.5 एकड़ जमीन के कागजों पर हेमंत सोरेन का नाम है। अगर है तो मैं इस्तीफा दे दूंगा। राजनीति से संन्यास क्या, मैं झारखंड ही छोड़कर चला जाऊंगा।’

उस दिन से अब तक करीब 9 महीने बीत गए। जमीन घोटाले में ED 30 से ज्यादा लोगों से पूछताछ कर चुकी है। जेल जाने पर हेमंत ने CM की कुर्सी छोड़ दी और चंपाई सोरेन को CM बनाया। 140 दिन जेल में गुजारने के बाद हेमंत सोरेन दोबारा झारखंड के मुख्यमंत्री हैं।

अब तक ऐसा कोई सबूत सामने नहीं आया है, जिससे पता चले कि जमीन पर हेमंत सोरेन ने ही कब्जा करवाया था। हालांकि, विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद ये मुद्दा एक बार फिर से झारखंड की राजनीति में गर्माया हुआ है। BJP इसी के बहाने सरकार को घेर रही है। झारखंड में 13 और 20 नवंबर को विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होगी।

रांची शहर के बीचोंबीच 31 करोड़ कीमत वाली 8.5 एकड़ जमीन की कहानी क्या है? क्यों CM हेमंत सोरेन को इसकी वजह से जेल जाना पड़ा? इस मामले का लीगल स्टेटस क्या है? झारखंड विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे का क्या असर हो सकता है? इन सवालों का जवाब जानने हम उसी जमीन पर पहुंचे, जो पूरे विवाद की जड़ है।

‘घोटाले वाली जमीन’ बोलते ही लोग रास्ता बता देते हैं बरियातु मोहल्ले में हर आदमी को पता है कि ‘घोटाले वाली जमीन’ कहां है। घनी आबादी वाले इस एरिया में पता पूछते हुए हम हरे रंग के गेट तक पहुंचे, जिसके पीछे एक क्रिकेट स्टेडियम के बराबर जमीन खाली पड़ी है। पूरे प्लॉट पर घास उगी है। एक छोर पर मकान और दूसरे छोर पर पहाड़ी है।

जीर से बंधा गेट खोलकर हम अंदर गए। एक कोने में झोपड़ीनुमा घर बना है। यहां हमें अनीता देवी मिलीं। वे मजदूरी करती हैं। अनीता बताती हैं, ‘मैं परिवार के साथ करीब 20 साल से यहां रह रही हूं। मेरे मैनेजर ने ही कहा था कि किराए के मकान में क्यों रहती हो, यहीं रहने लगो। जमीन की देखभाल भी हो जाएगी।’

अनीता बताती हैं, ‘2 साल पहले तक हिलेरियस कच्छप नाम का एक आदमी यहां खेती करवाता था। पिछले साल से अचानक ED की रेड पड़ने लगी। अफसर आने लगे। यहां रहने वाले सभी लोगों को हटा दिया। हमारे घर का बिजली कनेक्शन काट दिया। मुझे भी हटाने की कोशिश की, लेकिन मैं अड़ी रही। हमारे पास कोई जमीन नहीं है। हम कहां जाएंगे।’

‘सब इसे भुइहरी (सरकारी जमीन) बताते हैं। बड़गाईं गांव के रहने वाले राजकुमार पाहन इस पर मालिकाना हक जताते हैं। यहां की बाउंड्री और पत्थर की जुड़ाई सब कुछ उन्होंने ही करवाया है।’

बात जून 2022 की है। बरियातु पुलिस थाने में रांची नगर निगम के टैक्स कलेक्टर दिलीप शर्मा ने एक FIR दर्ज करवाई। इसमें प्रदीप बागची नाम के शख्स को आरोपी बनाया गया। आरोप था कि प्रदीप ने फर्जी कागजात से आर्मी की प्रॉपर्टी हड़प ली है।

इसकी जांच की जिम्मेदारी तब रांची के कमिश्नर रहे नितिन मदन कुलकर्णी को दी गई। कुलकर्णी ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया कि फर्जी नाम और पते के आधार पर सेना की जमीन पर कब्जे का खेल चल रहा है। उन्होंने सरकार के DC समेत जालसाजी में शामिल अफसरों पर कार्रवाई की सिफारिश की थी।

रांची नगर निगम के टैक्स कलेक्टर की ओर से दर्ज केस के आधार पर ED ने एनफोर्समेंट केस इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट, यानी ECIR दर्ज की और जांच अपने हाथ में ले ली। इसके बाद नवंबर, 2022 से ED ने मामले से जुड़े अधिकारियों और बड़े कारोबारियों के घर छापेमारी शुरू कर दी।

अप्रैल 2023 में ED ने प्रदीप बागची समेत सात आरोपियों को गिरफ्तार किया। उनमें से दो लोग अफसर अली और भानु प्रताप सरकारी कर्मचारी थे। अफसर अली सरकारी अस्पताल में ग्रेड-3 का कर्मचारी था, जबकि भानु प्रताप रेवेन्यू सब-इंस्पेक्टर था। बाकी सभी लैंड माफिया से जुड़े थे और फर्जी दस्तावेजों के जरिए जमीनों की बिक्री में शामिल थे। अब तक इस मामले में CM हेमंत सोरेन का नाम नहीं आया था।

जांच आगे बढ़ी…

 

रेवेन्यू सब-इंस्पेक्टर ने कबूला- CM के आदेश पर हुआ था जमीन का सर्वे ED ने इस केस में गिरफ्तार रेवेन्यू सब इंस्पेक्टर भानु प्रताप प्रसाद का बयान लिया। उन्होंने बताया कि 8.46 एकड़ जमीन के सर्वे का आदेश CM हाउस से आया था। उन्हें इस जमीन के सर्वे का आदेश उदय नाम के व्यक्ति ने दिया था। उदय ने कहा था कि बॉस की जमीन है। उदय CMO में काम करता है।

ED के अफसरों ने भानु प्रताप प्रसाद से पूछा कि बॉस कौन है, तब उसने हेमंत सोरेन का नाम लिया था। साथ ही बताया कि सर्वे का आदेश CO मनोज कुमार ने भी दिया था। इसके बाद ED ने मनोज कुमार का बयान लिया। उन्होंने कबूल किया कि जमीन हेमंत सोरेन की है। उन्हें ही बॉस कहते हैं। इसके बाद ED ने सोरेन पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया।

हेमंत को हाईकोर्ट से जमानत, ट्रायल कोर्ट में सुनवाई चलती रहेगी हेमंत सोरेन को झारखंड हाईकोर्ट से 28 जून को जमानत मिल गई है। हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ 8 जुलाई को ED की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। 29 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने हेमंत की जमानत बरकरार रखी। कोर्ट ने कहा कि जमानत की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट की तरफ से की गई टिप्पणियों का ट्रायल कोर्ट में सुनवाई के दौरान कोई असर नहीं पड़ेगा।

ED अब इस पूरे मामले को लेकर ट्रायल कोर्ट में पेपर फाइल करेगी। इसके बाद सभी आरोपियों को पक्ष रखने का वक्त दिया जाएगा। आरोपियों के जवाब के बाद ट्रायल कोर्ट की तरफ से आरोप तय किए जाएंगे। गवाही की प्रक्रिया शुरू होगी। इसके बाद फैसला आएगा।

मामले में आगे क्या होने वाला है, क्या हेमंत सोरेन को क्लीनचिट मिल सकती है, इस केस में किसका पक्ष मजबूत नजर आ रहा है, इन सवालों के साथ हम झारखंड हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट ए. अल्लाम के पास पहुंचे। अल्लाम 44 साल से वकालत कर रहे हैं। हमने उनसे लैंड स्कैम केस का कानूनी पक्ष समझा।

सवाल 1: क्या वाकई CM हेमंत ने आदिवासियों की जमीन कब्जाई है, कोर्ट क्या कह रहा है? जवाब: CM हेमंत अभी जमानत पर बाहर हैं, लेकिन केस का इन्वेस्टिगेशन चल रहा है। ED उनके खिलाफ गवाह और सबूत इकट्ठा कर रही है। इसके बाद वह सभी आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करेगी। अब तक की कार्रवाई में ED ने हेमंत को सिर्फ शक के आधार पर गिरफ्तार किया है। उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिल पाया है।

सवाल 2: ED का पक्ष कमजोर पड़ा है, क्या हेमंत को क्लीनचिट मिल सकती है? जवाब: डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में हेमंत के खिलाफ PMLA मनी लॉन्ड्रिंग का केस चल रहा है। ADJ के स्पेशल जज इसे देख रहे हैं। ये केस तब तक चलता रहेगा, जब तक हेमंत के खिलाफ ठोस सबूत नहीं मिल जाते।

अगर ED की इन्वेस्टिगेशन में गवाह मिलते हैं और वे डॉक्युमेंट दिखा देते हैं कि जमीन हेमंत के नाम है, या कोई ऐसा प्रूफ है कि जमीन हेमंत के नाम कर दी गई है और इसके पेपर छिपाए गए, तभी हेमंत के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। नहीं तो अदालत इस मामले को CASE OF NO EVIDENCE मान कर बंद कर देगी।

सवाल 3: ED के मुताबिक, इस जमीन से हेमंत की अवैध कमाई होती थी, इसलिए मनी लॉन्ड्रिंग केस चला, क्या ऐसा हो सकता है? जवाब: ED की दलील का कोई बेस नहीं नजर आता। मनी लॉन्ड्रिंग का मामला तब माना जाएगा, जब जमीन बेचने वाले को बड़ी रकम दी गई हो और साबित न हो कि पैसा कहां से आया। अगर जायज पैसे से जमीन खरीदी जाती है, तो ये मनी लॉन्ड्रिंग नहीं कहलाएगा।

 

एक्सपर्ट बोले- हेमंत के वोटर्स पर असर नहीं, वे नारा दे रहे ‘जेल का बदला जीत से’ झारखंड के सीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल एक्सपर्ट शंभू नाथ चौधरी कहते हैं, ‘जमीन घोटाले के आरोप से हेमंत सोरेन के कोर वोटर्स पर कोई असर नहीं पड़ेगा। हेमंत अपने समर्थकों तक ये बात पहुंचाने में कामयाब रहे हैं कि वे निर्दोष हैं।’

‘वे लगातार दोहरा रहे हैं कि सीधे-सादे आदिवासी CM को काम नहीं करने दिया गया। वे काम करना चाह रहे थे, तो उन्हें जेल भेज दिया। विधानसभा चुनाव का ऐलान होते ही हेमंत सोरेन जेल का बदला जीत से का नारा दे रहे हैं।’

 

 

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