Parliament Session: मनोबल से तय होगी राजनीति समझिए सब कुछ

Parliament Session: मनोबल से तय होगी राजनीति कुरुक्षेत्र में समझिए सब कुछ

 

Parliament Session: लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने 49 साल पहले 25 जून 1975 को देश में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल की निंदा का प्रस्ताव पढ़ना शुरु किया।

Parliament Session: मनोबल से तय होगी राजनीति समझिए सब कुछ
Parliament Session: मनोबल से तय होगी राजनीति समझिए सब कुछ

Parliament Session: ओम बिरला को अध्यक्ष आसन तक ले गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नए नवेले नेता विपक्ष राहुल गांधी। सत्ता पक्ष और प्रति पक्ष के बीच  इस घटना से उम्मीद जगी कि  संवाद और सहयोग का एक नया रास्ता नई लोकसभा में खुल सकता है, लेकिन महज कुछ ही देर में यह उम्मीद तार तार हो गई जब लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने 49 साल पहले 25 जून 1975 को देश में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल की निंदा का प्रस्ताव पढ़ना शुरु किया।

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Parliament Session: भाजपा को भले ही अपने बलबूते पूरा बहुमत नहीं मिला, लेकिन सहयोगी दलों के साथ एनडीए गठबंधन को बहुमत से 21 सीटें ज्यादा मिलीं तो दूसरी तरफ विपक्षी इंडिया गठबंधन भी 234 सांसदों के साथ इस बार ज्यादा हौसले के साथ सरकार को घेरने का खम ठोंक रहा है। आम चुनावों के बाद भारत में 18वीं लोकसभा गठित हो गई। जवाहर लाल नेहरू के बाद नरेंद्र मोदी तीसरी बार लगातार प्रधानमंत्री बनने वाले दूसरे नेता हो गए, लेकिन लोकसभा में अब सामने अधीर रंजन चौधरी नहीं, बल्कि राहुल गांधी मुकम्मल नेता विपक्ष के रूप में हैं।

Parliament Session:  सहयोगी दल तो अड़े नहीं विपक्षी इंडिया गठबंधन ने भी अपना उम्मीदवार तो खड़ा किया, लेकिन के सुरेश के लिए मत विभाजन की मांग विपक्ष ने भी नहीं की। वहीं इस बार सरकार कमजोर है और सहयोगी दलों के दबाव में काम करेगी जैसी तमाम आशंकाओं और अफवाहों को दरकिनार करते हुए सरकार ने भाजपा सांसद ओम बिरला को दूसरी बार भी स्पीकर चुनवा लिया।

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Parliament Session: इंडिया गठबंधन के सांसदों ने संविधान का गुटका संस्करण हाथ में लेकर ‘जय संविधान’ का नारा लगाया, उससे सरकार और भी ज्यादा परेशान दिखाई दी।
Parliament Session: इस प्रस्ताव के जरिए कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करते हुए उसके संविधान बचाओ नारे का सरकार की ओर से करारा जवाब दिया गया और विरोध में कांग्रेस सांसद लगातार नारेबाजी करते रहे। दरअसल, जिस तरह विपक्ष खासकर कांग्रेस और राहुल गांधी ने लोकसभा चुनावों में संविधान पर कथित खतरे को मुद्दा बनाया और उसका जवाब भाजपा कारगर तरीके से नहीं दे सकी, जिसका नुकसान उसे अपनी 63 सीटें गंवाकर चुकाना पड़ा। उससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सत्ताधारी भाजपा बेहद असहज है। विपक्ष सिर्फ चुनावों तक ही नहीं रुका, बल्कि नए सांसदों के शपथग्रहण के दौरान जिस तरह इंडिया गठबंधन के सांसदों ने संविधान का गुटका संस्करण हाथ में लेकर ‘जय संविधान’ का नारा लगाया, उससे सरकार और भी ज्यादा परेशान दिखाई दी।
Parliament Session:  इस साल और अगले साल होने वाले राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा को नुकसान हो सकता है
Parliament Session: इस पर कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कुछ कहा तो लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने उन्हें नसीहत देते हुए कहा कि चलो बैठो। भाजपा को डर है कि अगर विपक्ष संविधान को लेकर इसी तरह आक्रामक रहा तो इस साल और अगले साल होने वाले राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा को नुकसान हो सकता है, इसलिए विपक्ष के संविधान मुद्दे की काट के लिए सत्ता पक्ष ने आपातकाल का निंदा प्रस्ताव लाकर कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करने और इंडिया गठबंधन के उन घटक दलों जो आपातकाल में सरकारी दमन के शिकार हुए थे, को इस मुद्दे पर कांग्रेस से दूर करने की कोशिश की है। सदन में जब लोकसभा अध्यक्ष आपातकाल की निंदा का प्रस्ताव कर रहे थे तब जहां कांग्रेसी सांसद विरोध में नारे बाजी कर रहे थे, वहीं समाजवादी पार्टी राजद डीएमके जैसे दलों के सांसद चुप थे। यहां तक कि सत्र के दूसरे दिन कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने जब शपथ लेने के बाद जय संविधान का नारा लगाया तो स्पीकर ने उन्हें टोकते हुए कहा कि संविधान की शपथ तो आप ले ही रहे हैं।

Parliament Session:  नेता विपक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के साथ शिष्टाचार भेंट में उनसे कहा कि सदन में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बेहतर तालमेल और संवाद बनाने के लिए आपातकाल जैसे मुद्दे पर प्रस्ताव नहीं लाया जाना चाहिए था, क्योंकि इसे लेकर पहले ही कांग्रेस अपनी गलती मान चुकी है। संविधान को लेकर सरकार और स्पीकर के इन तेवरों ने विपक्ष को भी असहज कर दिया। अगले दिन राष्ट्रपति के अभिभाषण में भी आपातकाल का जिक्र आने पर भी कांग्रेस ने ऐतराज जताया और कांग्रेस संगठन महासचिव के.सी.वेणुगोपाल ने लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर अपना विरोध प्रकट किया।

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Parliament Session: दूसरी तरफ समाजवादी सांसद और दलित नेता आरके चौधरी ने सदन में स्थापित सेंगुल को राजशाही का प्रतीक चिन्ह बताते हुए इसे हटाने और इसकी जगह भारतीय संविधान स्थापित करने की मांग करके नई बहस छेड़ दी है। भाजपा जहां सेंगुल को भारतीय और तमिल संस्कृति का अमिट चिन्ह बताते हुए इसे राजदंड नहीं बल्कि धर्मदंड कहते हुए सदन में इसे स्थापित करने को सही ठहरा रही है वहीं विपक्ष संविधान को सर्वोपरि बताते हुए इस मुद्दे पर सरकार को घेर रहा है। इसके बाद विपक्षी इंडिया गठबंधन के सभी नेताओं की बैठक में सदन में सरकार को नीट और तमाम मुद्दों पर घेरने की नई रणनीति बनाई गई।

Parliament Session:  सांसदों को सदन से निलंबित किया गया और दस साल लोकसभा में विपक्ष नेता विहीन रहा
Parliament Session: ये घटनाएं बताती हैं कि लोकसभा चुनावों के नतीजों के बाद संवाद और सहयोगी की जो संभावना जताई जा रही थी, उसको पहले दिन ही नष्ट कर दिया गया है, क्योंकि दस साल तक प्रचंड बहुमत वाली मोदी सरकार और कमजोर विपक्ष के बीच संसद के भीतर जो असंतुलन था और सरकार ने जिस तरह विपक्ष की परवाह किए बिना तमाम कानून पारित करवाए, कई सांसदों को सदन से निलंबित किया गया और दस साल लोकसभा में विपक्ष नेता विहीन रहा और आखिरी पांच साल लोकसभा में कोई उपाध्यक्ष भी नहीं रहा, लेकिन माना गया कि अब भाजपा के बहुमत से काफी दूर रह जाने और सहयोगी दलों के समर्थन से चलने वाली एनडीए सरकार का रुख अब विपक्ष के प्रति बदलेगा और पहले की तुलना में ज्यादा मजबूत विपक्ष जिसके पास अब राहुल गांधी जैसा आक्रामक नेता विपक्ष है, उसके साथ सत्ता पक्ष के संवाद और सहयोग का दौर शुरु होगा क्योंकि विपक्ष की उपेक्षा अब संभव नहीं होगी।
Parliament Session: डिप्टी स्पीकर देने को सरकार राजी नहीं हुई और स्पीकर के चुनाव में जाने में कोई परहेज नहीं किया गया
Parliament Session: परंतु जिस तरह के तेवर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने दिखाए है, उससे यह आशंका मजबूत हो गई है कि 18 वीं लोकसभा में सहयोग और संवाद नहीं बल्कि एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ ज्यादा रहने वाली है।क्योंकि सरकार ने पहले दिन से ही जिस तरह फैसले लिए हैं जैसे मंत्रिमंडल गठन में अपवादों को छोड़कर लगभग वही चेहरे और विभाग हैं जो पिछली सरकार में थे। रही बची कसर ओम बिरला को दोबारा लोकसभा अध्यक्ष बनाकर पूरी कर ली गई। विपक्ष के दबाव को दरकिनार करते हुए उसे डिप्टी स्पीकर देने को सरकार राजी नहीं हुई और स्पीकर के चुनाव में जाने में कोई परहेज नहीं किया गया, क्योंकि नंबर सरकार के पास बहुमत से खासे ज्यादा थे।
Parliament Session: प्रधानमंत्री मोदी और सरकार की कार्यशैली व तेवरों में कोई कमजोरी या बदलाव नहीं है
Parliament Session: अपने इन कदमों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सरकार ने विपक्ष को समूची राजनीतिक जमात को सभी संस्थाओं को और नौकरशाही समेत देश विदेश को यह संदेश दे दिया कि भले ही भाजपा के अपने दम पर बहुमत नहीं मिला और एनडीए गठबंधन की सरकार बनी है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और सरकार की कार्यशैली व तेवरों में कोई कमजोरी या बदलाव नहीं है। सरकार किसी दबाव में नहीं झुकेगी चाहे वह सहयोगी दलों का हो या विपक्ष का। सरकार बिना किसी दबाव के अपने फैसले लेगी और अपनी नीतियों व कार्यक्रमों को जारी रखेगी। यानी सरकार का साफ संदेश है कि भले ही मीडिया राजनीतिक विश्लेषक उसे पहले की तुलना में कमजोर आंकें लेकिन वह अब भी उतनी ही मजबूत और ताकतवर है जितनी पहले थी।
Parliament Session: एक दूसरे को कमजोर साबित करने और खुद को दूसरे से ज्यादा मजबूत दिखाने की यह होड़
Parliament Session: दूसरी तरफ विपक्ष ने यह संदेश सरकार और देश को दिया है कि दस साल तक जो मनमानी सत्ता पक्ष ने की है वह अब नहीं चलेगी क्योंकि अब विपक्ष भी मजबूत है।विपक्ष का कहना है कि भले ही सदन में संख्या बल सरकार के पास ज्यादा है लेकिन मनोबल उसके पास ज्यादा है, क्योंकि सत्ता पक्ष की सीटें कम हुई हैं और विपक्ष के सांसदों की संख्या में अच्छी खासी वृद्धि हुई है। एक दूसरे को कमजोर साबित करने और खुद को दूसरे से ज्यादा मजबूत दिखाने की यह होड़ आने वाले दिनों में और तेज होगी और संसद में सत्ता पक्ष व प्रति पक्ष का टकराव लगातार बढ़ता हुआ दिखाई देगा।
Parliament Session: लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में प्रधानमंत्री मोदी के समानांतर भूमिका में रहेंगे।
Parliament Session: इन नई लोकसभा में राहुल गांधी का नेता विपक्ष बनकर आना भी बड़ी राजनीतिक घटना है। पिछले करीब दो सालों में राहुल गांधी ने जिस तरह अपना कायांतरण किया है और वह एक ऐसे आक्रामक विपक्षी नेता के रूप में उभर कर आए हैं जो लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को हर मुद्दे पर निशाने पर लेता रहा है और लोकसभा चुनाव में जिस तरह राहुल गांधी ने इंडिया गठबंधन के दूसरे नेताओं के साथ अपनी समझदारी बनाई है, उसने भी उन्हें स्वीकार्य बनाया है। अब वह लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में प्रधानमंत्री मोदी के समानांतर भूमिका में रहेंगे। अनेक समितियों में वह शामिल होंगे। सीबीआई, सीवीसी, चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं की चयन समितियों के सदस्य के रूप में प्रधानमंत्री के साथ बैठेंगे और महत्वपूर्ण सरकारी कार्यक्रमों में उन्हें बतौर नेता विपक्ष आमंत्रित किया जाएगा। राहुल और मोदी के बीच जिस तरह खट्टे मीठे रिश्ते हैं, उनसे भी लोकसभा के भीतर खासी गरमा गरमी रहने की संभावना है।
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